ISRO भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने रविवार को अपनी पुन: दोबारा उड़ने वाली रॉकेट प्रौद्योगिकी के तीसरे सफल परीक्षण की घोषणा की। इसरो ने कहा कि प्रक्षेपण यान का परीक्षण कड़ी परिस्थितियों में किया गया और यह सभी मानकों पर खरा उतरा। इस परीक्षण में इसरो ने तेज गति से विमान के लैंडिंग इंटरफेस और लैंडिंग स्थितियों का परीक्षण किया। इस प्रयोग के साथ इसरो ने आज की सबसे महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में से एक को साकार करने की दिशा में एक निर्णायक कदम उठाया है।
ISRO New Mission RLV रहा सफल
Reusable Launch Vehicle (RLV) तकनीक का तीसरा सफल परीक्षण।
इसरो ने रविवार सुबह 7.10 बजे कर्नाटक के चित्रदुर्ग में एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन का तीसरा और अंतिम परीक्षण किया। इसरो ने पहले पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान के दो सफल परीक्षण किए थे। तीसरे परीक्षण में, प्रक्षेपण यान को अधिक ऊंचाई से और तेज़ हवाओं में लॉन्च किया गया था, लेकिन पुष्पक प्रक्षेपण यान फिर भी रनवे पर सुरक्षित और पूर्ण सटीकता के साथ उतरा।
ISRO ने किस प्रकार किया था लॉन्च
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— ISRO (@isro) June 23, 2024
परीक्षण के दौरान पुष्पक प्रक्षेपण यान को वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर से साढ़े चार किलोमीटर की ऊंचाई से प्रक्षेपित किया गया। इसके बाद पुष्पक प्रक्षेपण यान सफलतापूर्वक ऑटोनॉमस मोड में रनवे पर उतरा। लैंडिंग के समय डिवाइस की गति लगभग 320 किलोमीटर प्रति घंटा थी। मान लीजिए कि लैंडिंग के समय एक विमान की गति 260 किलोमीटर प्रति घंटा है, और एक लड़ाकू विमान की गति लगभग 280 किलोमीटर प्रति घंटा है। उतरते समय सबसे पहले ब्रेकिंग पैराशूट का उपयोग करके प्रक्षेपण यान की गति को 100 किलोमीटर प्रति घंटा तक कम किया गया और फिर लैंडिंग गियर ब्रेक का उपयोग करके विमान को रनवे पर रोक दिया गया।
ISRO की तकनीक की मदद से अंतरिक्ष अभियानों की लागत घटेगी।
परीक्षणों में वाहन के स्टीयरिंग और फ्रंट व्हील स्टीयरिंग सिस्टम के प्रदर्शन की भी जांच की गई। भविष्य में रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने, उन्हें पृथ्वी पर सुरक्षित उतारने और वापस अंतरिक्ष में भेजने के लिए यह तकनीक महत्वपूर्ण होगी। इस तकनीक की मदद से इसरो की लागत काफी कम हो जाएगी क्योंकि अंतरिक्ष अभियानों में प्रक्षेपण यानों को लॉन्च करने की लागत बहुत अधिक होती है और उपयोग के बाद इनका दोबारा उपयोग नहीं किया जाता है। पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण प्रौद्योगिकी की मदद से अब अंतरिक्ष मलबे की बढ़ती समस्या का समाधान किया जा सकता है।
ISRO ने परिक्षण के दौरान इस उपकरण का किया इस्तेमाल
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